दोष निवारण के उपाय---
ज्योतिष-विद्या वह विज्ञानं है जो प्राक्रतिक नियमो की व्याख्या करती है।यह पूर्ण-रूपेण कर्म और पुनर्जन्म के सिद्धांत पर आधारित है।यहाँ पर न्यूटन के तीसरे नियम का समर्थन करती है कि प्रत्येक क्रिया की विपरीत प्रतिक्रिया होती है।यह सिद्ध होता है की कोई भी कर्म व्यर्थ नहीं जाता और बिना कारन कुछ नहीं होता। इस कारन से ज्योतिष विद्या को निर्णयात्मक विज्ञानं कहा जाता है।योग्य ज्योतिष द्वारा दिए गए यथार्थ फलादेश निश्चित ही फलित होते हैं,चाहे कोई उपाय करे या न करे।सभी मामलो में उपाय अशुभ से बचने के लिए पूर्ण सुरक्षा प्रदान नहीं करते।यह सभी को प्रत्याभूत भी नहीं होते। वे जो उपायों में विश्वास रखते हैं वो पूछते हैं कि यदि कोई अशुभता उपायों द्वारा कम नहीं की जा सकती तो क्यों ऋषियों ने अशुभता मिटने हेतु उपायों को निर्दिष्ट किया।यदि प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया होती है तो उपाय कैसे विफल हो सकते हैं? ज्योतिष-विद्या कहती है भाग्य को बदला नहीं जा सकता। प्रारब्ध से क्या तात्पर्य है इसे जो ज्योतिष नहीं हैं,वे सामान्यतः उचित रीती से समझ नहीं पाते हैं।प्रारब्ध वह होता है जो पिछले जन्म में किये कर्मो की वजह से जातक को इस जन्म में मिलता है।किसी व्यक्ति का प्रारब्ध इस जन्म में उपाय करने को प्रेरित करता है।
अब यहाँ यह देखिये
ज्योतिष-विद्या वह विज्ञानं है जो प्राक्रतिक नियमो की व्याख्या करती है।यह पूर्ण-रूपेण कर्म और पुनर्जन्म के सिद्धांत पर आधारित है।यहाँ पर न्यूटन के तीसरे नियम का समर्थन करती है कि प्रत्येक क्रिया की विपरीत प्रतिक्रिया होती है।यह सिद्ध होता है की कोई भी कर्म व्यर्थ नहीं जाता और बिना कारन कुछ नहीं होता। इस कारन से ज्योतिष विद्या को निर्णयात्मक विज्ञानं कहा जाता है।योग्य ज्योतिष द्वारा दिए गए यथार्थ फलादेश निश्चित ही फलित होते हैं,चाहे कोई उपाय करे या न करे।सभी मामलो में उपाय अशुभ से बचने के लिए पूर्ण सुरक्षा प्रदान नहीं करते।यह सभी को प्रत्याभूत भी नहीं होते। वे जो उपायों में विश्वास रखते हैं वो पूछते हैं कि यदि कोई अशुभता उपायों द्वारा कम नहीं की जा सकती तो क्यों ऋषियों ने अशुभता मिटने हेतु उपायों को निर्दिष्ट किया।यदि प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया होती है तो उपाय कैसे विफल हो सकते हैं? ज्योतिष-विद्या कहती है भाग्य को बदला नहीं जा सकता। प्रारब्ध से क्या तात्पर्य है इसे जो ज्योतिष नहीं हैं,वे सामान्यतः उचित रीती से समझ नहीं पाते हैं।प्रारब्ध वह होता है जो पिछले जन्म में किये कर्मो की वजह से जातक को इस जन्म में मिलता है।किसी व्यक्ति का प्रारब्ध इस जन्म में उपाय करने को प्रेरित करता है।
अब यहाँ यह देखिये
A--- जातक ने 50000 रुपये किसी के धोखाधड़ी से मार दिए हैं,
और
B--- जातक ने 100 रुपये का धोखा दिया है।
अब दोनों ने 100 रुपये का दान किया तो A जातक को तो कष्ट रहेगा ही क्योंकि उसके द्वारा किया गया दान नगण्य है, B द्वारा किया गया दान उसके कष्ट कम कर देगा ,क्योंकि वो क़र्ज़ से मुक्त हो चूका है । कुछ अपराध या कर्म जो जातक ने किये है वो अछम्य होते है जैसे किसी की हत्या करना,फिर वे चाहे इश्वर की कितनी भी आराधना करे उन्हें उसका दंड भोगना ही होता है। जब किसी इंसान की ऐसे ग्रह की दशा चल रही हो जिस पर पाप ग्रहों की दृष्टी हो तो इसका मतलब है उसने पिचले जन्मो में पाप कर्म किये हैं। इसी तरह दो जातक ज्योतिष के पास आते हैं एक की दशा अभी अच्छी नहीं है और एक की बुरी दशा समाप्त होने वाली है तो जिसकी अच्छी दशा आने वाली है उसे तो उपाय का लाभ जल्दी मिल जायेगा। पर जिसकी अच्छी दशा आने में देर है उसे उपाय से फल देर से ही मिलेगा
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