जरुरत से ज्यादा आध्यात्मिकता आपको पागल बना सकती है। रोजमर्रा का जीवन ही नहीं पूरी दुनियाँ ठप्प पड़ सकती है ,आध्यात्मिकता के नाम पर जो परोसा जाता है। अब हमारे पश्चिम बंगाल में एक खानदान के दिमाग में घुस गया कि आत्मा की मृत्यु नहीं होती सिर्फ शरीर की मृत्यु होती है ,अब अपनी इस सोच के तहत उनका मरने के बाद शरीर के दाह-संस्कार से विश्वास उठ गया ,इसी सोच के तहत एक भाई ने अपनी बहन की लाश घर पर ही रख दी ,क्योंकि वो उसकी मृत्यु हुई नहीं मान रहा था। अब गिरफ्तार होकर आजीवन जेल में सड़ेगा। अब सम्भालो पागलो को। आध्यात्मिकता और वास्तविकता का घालमेल न करे। कर्म करें ज्यादा मोक्ष मोक्ष न सोचे। कुछ लोग अन्न जल त्याग करके बिस्तर पर पड़े है मोक्ष के इंतज़ार में ये साधना नहीं पागलपन है ,मूर्खता है। तब तो अपने बच्चे को भी जन्म के बाद से ही भोजन -पानी कुछ न देकर जल्दी मोक्ष करवा दीजिये उसका भी ,क्योंकि बड़ा होगा तो पाप कर्म कर सकता है ,उन पाप के कर्मो का फल अगले जन्म में भोगेगा ,इसलिए उसे मुक्त कर दीजिये आप न बड़ा होगा न पाप करेगा ,पिछले जन्मो के कर्मो से आप जैसे मुर्ख के घर जन्म हुआ है उसका ,अब आगे पाप न करके उसको अन्न जल बचपन में ही त्याग करवा कर उसका मोक्ष संपन्न कीजिये जन्म से २ दिन में ही बैकुंठ पहुँच जाएगा। आपने सुना होगा कुछ लोग सामूहिक आत्महत्या करते हैं ये सोच कर कि मृत्यु के बाद का जीवन इससे ज्यादा सुखकर है। पागलपन ही कहेंगे न इस सोच को।
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