Thursday, 21 June 2018

आजके आधुनिक बाबाओ के लगातार अन्दर जाने के परिप्रेक्ष्य में मेरी २ साल पुराणी पोस्ट। 
क्या माता पिता के रहते गुरु धारण करना चाहिए---
यदि मनुष्य माता-पिता की सच्चे मन से (बोझ समझ कर नहीं या केवल कर्तव्य निभाने के लिए नहीं) सेवा करता है, उनकी आज्ञा का पालन करता है ,उनके बताये मार्ग पर चलता है तथा उनके परामर्श का सम्मान करता है तो उसे उनके जीवित रहते किसी गुरु को धारण करने की कोई जरुरत नहीं है। क्योंकि माता-पिता से बड़ा कोई गुरु नहीं हो सकता। यदि माता-पिता में से एक भी जीवित है तो गुरु धारण करने का कोई कारण नहीं है। हाँ जब दोनों जीवित न हो तो गुरु धारण किया जा सकता है। यहाँ शिक्षा प्राप्त करने के लिए जो गुरु है उनकी बात नहीं की जा रही। धार्मिक गुरु की बात कर रहा हूँ जिसका चलन आजकल बहुत जोरो पर हैं और अच्छा खासा धंधा बन चुका है।

इसी तरह पति के जीवित रहते पत्नी को गुरु धारण नहीं करना चाहिए, क्योंकि पति से बढ़कर अन्य कोई भी उसके लिए गुरु नहीं हो सकता। आजकल कुछ विवाहित महिलाओ में गुरु धारण करने की होड़ सी लग गई है, हमारे धर्म में पति को परमेश्वर कहा गया है। जो स्त्री पति का तिरस्कार करती है और परिवार के कर्तव्यों से विमुख होकर या अपने कर्तव्यों को तिलांजलि देकर किसी धर्मगुरु, आचार्य या महाराज की कथा प्रवचन या उपदेश सुनने जाती है तो वो पाप की भागी होती है। धर्म का अभिन्न अंग कर्तव्य पालन करना होता है।

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