प्रकाश व् अन्धकार एक दूसरे से सम्बंधित ही है अलग नहीं - प्रकाश का मतलब आप तभी समझते हैं -जब आपको अन्धकार का मतलब पता हो। इसी तरह आसुरिक शक्ति या सोच - नकारात्मक विचार या सकारात्मक विचार आपके अंदर विद्यमान होते हैं - मसला इनके लालन -पालन का भी है और इसे समझने का भी - ज्योतिष के ग्रहों के भी इसी तरह कुछ बेसिक मूल है जो आपको परिचित करवाता है स्वाभाव से -अब दिन को अगर बादल घिर जाए तूफ़ान आ जाए फिर जितना भी अन्धकार हो जाए इसे आप रात नहीं कह सकते ये -अन्धकार का वक्ती वर्चस्व होता है प्रकाश पर यानि -इसे यूँ भी समझ सकते हैं कि नकारात्मक विचार का सकारात्मक सोच पर प्रभाव - इसी तरह दीवाली की रात को कितनी भी रौशनी फ़ैल जाए - मगर आप उसे दिन नहीं कह सकते - इसे यूँ कह सकते हैं अन्धकार पर प्रकाश की विजय - मगर उस वक्त का या समय का मूल स्वभाव अन्धकार ही रहेगा - ये हमारे समाज के बड़े- बड़े धनी बागड़बिल्ले विभिन्न ऊँचे पदों से रिटायर हुए - सारी जिंदगी व्यवसाय से धन कमाने के बाद आध्यात्म की माँ-बहन करने के पहले -ज्योतिष के मूल को समझे या ज्योतिष शास्त्र को तो कम से कम बख्स दे अपनी हनक या धमक से--- ऋषियों की वाणी को ठीक से समझे - इस बेसिक को पहले समझे कि मूल में कोई अंतर संभव नहीं है - जैसे कोई इंसान बंदरों- जैसी या कुत्तो जैसी हरकते कर सकता है वक्ती तौर पर मगर मूल रूप से वो है मनुष्य ही -इसी तरह कभी कभी जानवर भी मनुष्यो से ज्यादा समझदारी दिखा देते हैं पर मूल रूप से उनकी जन्म पहचान लुप्त नहीं हो जाती रहता वो पशु ही है। इस मूल तत्व को पहचानिए।
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