Saturday, 30 June 2018

बृहस्पति वार को सर के बाल न कटवाने की हिदायत दी जाती है। बृहस्पतिवार धर्म का दिन होता है। हमारे ब्रह्मांड में स्थित नौ ग्रहों में से गुरु वजन में सबसे भारी ग्रह है। जिन लोगो को ये लगता है कि क्यों गुरु कुंडली के ज्यादातर भावो का कारक है वो जरा आकाशगंगा (एस्ट्रोनॉमी) समझे बृहस्पति ग्रह की गुरुत्वाकर्षण शक्ति पृथिवी से कई गुणा ज्यादा है उधर आकाशगंगा यानि अंतरिक्ष में कोई भी उल्का टूट कर पृथिवी की ओर बढ़ती है तो गुरु ग्रह की गुरुत्वाकर्षण शक्ति और इसके आकार के कारण उस उल्का को धरती पर पहुँचने के पहले ही ये अपनी तरफ खींच लेता है -अब समझ ले कि अगर ऐसा न हो तो धरती कुछ मिनटों या एक दिन में खत्म हो जायेगी। यही कारण है कि बृहस्पति को जीव-कारक और जीवनदाई ग्रह कहा जाता है और पत्रिका का शुभ ग्रह कहलाता है। धन-का कारक संतान का कारक ,धर्म का कारक ,कर्म का कारक ,लाभ भाव का कारक यही ग्रह है और कुंडली में जयादातर भावो का कारक है ,संतान का कारक इसलिए क्योंकि बृहस्पति ''वृद्धि'' का कारक है और संतान होना परिवार में वृद्धि का संकेत है -लाभ भी वृद्धि का कारक होता है। इसीलिए बृहस्पति वार को बाल न काटने की हिदायत दी जाती है और यही कारण है कि इस दिन हर वो काम जिससे कि शरीर या घर में हल्कापन आता हो। ऐसे कामों को करने से मना किया जाता है क्योंकि ऐसा करने से गुरु ग्रह हल्का होता है। यानि कि गुरु के प्रभाव में आने वाले कारक तत्वों का प्रभाव हल्का हो जाता है। गुरु धर्म व शिक्षा का कारक ग्रह है। गुरु ग्रह को कमजोर करने से शिक्षा में असफलता मिलती है। साथ ही धार्मिक कार्यों में झुकाव कम होता चला जाता है।किसी भी जन्मकुंडली में दूसरा धन वृद्धि और ग्यारहवां भाव लाभ के स्थान होते हैं। गुरु ग्रह इन दोनों ही स्थानों का कारक ग्रह होता है। गुरुवार को गुरु ग्रह को कमजोर किए जाने वाले काम करने से धन की वृद्धि रुक जाती है। धन लाभ की जो भी स्थितियां बन रही हों,उन सभी में रुकावट आने लगती है, सिर धोना, भारी कपड़े धोना, बाल कटवाना, शेविंग करवाना, शरीर के बालों को साफ करना, फेशियल करना, नाखून काटना, घर से मकड़ी के जाले साफ करना, घर के उन कोनों की सफाई करना जिन कोनों की रोज सफाई नहीं की जा सकती हो, ये सभी काम गुरुवार को करना धन हानि का संकेत हैं। गुरु का खराब होना संतान को भी बुरे फल देता है।
A Real story---
An old post
worth reading -- Remedy and astrology
ज्योतिष पर अक्सर लगती ये तोहमत कि आपने आने वाले बुरे समय के बारे में आगाह नहीं किया-
जातक--- सर मैं ५ साल पहले आया था ,तब अच्छा कारोबार चल रहा था। मगर आज मैं बर्बाद हो हूँ व्यवसाय में उधारी चढ़ गई है। पर आपने मुझे बताया नहीं था कि मेरा बुरा वक्त आ रहा है।
ज्योतिष (मैं खुद)--- भाई अगर मैं बता देता तो मेरे पर ये तोहमत लगा देते कि मैं आपको डरा रहा हूँ । ( जैसा कि फेसबुक में भी ज्योतिष ग्रुपों में ये तोहमत ज्योतिष पर लगा दी जाती है कि आप डरा रहे हैं और डरा कर रत्न खरीदने की सलाह दे रहे हैं ) और मैने आपको कहा था कि आपका बृहस्पति और सूर्य -चन्द्र कमजोर हैं आपको सलाह भी थी इन रत्नो को आप धारण करें। मगर तब आपका वक्त अच्छा था आपने मेरी सलाह को फूंक मारकर उड़ा दिया था ,रत्नो के मूल्य आपको उस वक्त ज्यादा लग रहे थे। हालाँकि मैने सचमुच इतना खतरनाक समय का इंगित नहीं किया था ,मगर ग्रहो के कमजोर होने की बात कही थी और कहा था कि इन्हे धारण करे।
जातक--- हाँ कहा तो था ,पर मैं रत्न खरीद नहीं पाया न हैकोई उपाय किया।
ज्योतिष--- ऐसा ही होता है जब वक्त अच्छा होता है तो आपको लगता है ये सारी जिंदगी ऐसे ही जाएगा। हमभी मजबूर है एकदम हर सत्य जातक को नहीं बता सकते। हम पर जातक को डराने की तोहमत लग जाती है।
जातक--- अब मैं क्या करूँ?
ज्योतिष --- क्या करोगे भाई अब मैं अपनी जेब से खर्च करके रत्न देने से तो रहा। दशा उस वक्त अच्छी थी जिसमे आप कमा रहे थे। अब दशा खराब आई है तो वो भोगना ही होगा।
जातक--- क्या वो रत्न मैं पहन लेता तो आज क्या मैं बर्बाद नहीं होता? इस बुरी दशा का असर मुझ पर नहीं पड़ता?
ज्योतिष--- ऐसा नहीं है, पर हो सकता है आपका नुक्सान कम होता ,सही सोच पनपती आप कोई रास्ता बना कर रखते। रत्न सीधे आपके हाथ में धन थोड़ी ही देंगे। ग्रह ठीक हो तो सोच कुछ हद्द तक सही रहती है और निर्णय सही ले लेता है। हो सकता है आप इतनी बचत करके रखते बुरा वक्त निकलने में सहायता होती।
जातक--- आप सही कह रहे हैं। अब आप मार्ग दिखाए।
ज्योतिष--- भाई जब वक्त बुरा होता है तो सहज में ठीक नहीं होता। फिर भी आप मन्त्र-जाप से शुरुआत कीजिये। मेरा पिछला बकाया चुकाइये। जिस पर आपने भांजी मार दी थी अच्छे वक्त के समय। और मन्त्र जाप जो बताया गया है उसके जाप पांच लाख होने के पहले मेरे पास न आएं। मेरा पैसा देने भी नहीं।
जातक--- पांच लाख।
ज्योतिष--- जी हाँ पांच लाख कम से कम।

Monday, 25 June 2018

प्रकाश व् अन्धकार एक दूसरे से सम्बंधित ही है अलग नहीं - प्रकाश का मतलब आप तभी समझते हैं -जब आपको अन्धकार का मतलब पता हो। इसी तरह आसुरिक शक्ति या सोच - नकारात्मक विचार या सकारात्मक विचार आपके अंदर विद्यमान होते हैं - मसला इनके लालन -पालन का भी है और इसे समझने का भी - ज्योतिष के ग्रहों के भी इसी तरह कुछ बेसिक मूल है जो आपको परिचित करवाता है स्वाभाव से -अब दिन को अगर बादल घिर जाए तूफ़ान आ जाए फिर जितना भी अन्धकार हो जाए इसे आप रात नहीं कह सकते ये -अन्धकार का वक्ती वर्चस्व होता है प्रकाश पर यानि -इसे यूँ भी समझ सकते हैं कि नकारात्मक विचार का सकारात्मक सोच पर प्रभाव - इसी तरह दीवाली की रात को कितनी भी रौशनी फ़ैल जाए - मगर आप उसे दिन नहीं कह सकते - इसे यूँ कह सकते हैं अन्धकार पर प्रकाश की विजय - मगर उस वक्त का या समय का मूल स्वभाव अन्धकार ही रहेगा - ये हमारे समाज के बड़े- बड़े धनी बागड़बिल्ले विभिन्न ऊँचे पदों से रिटायर हुए - सारी जिंदगी व्यवसाय से धन कमाने के बाद आध्यात्म की माँ-बहन करने के पहले -ज्योतिष के मूल को समझे या ज्योतिष शास्त्र को तो कम से कम बख्स दे अपनी हनक या धमक से--- ऋषियों की वाणी को ठीक से समझे - इस बेसिक को पहले समझे कि मूल में कोई अंतर संभव नहीं है - जैसे कोई इंसान बंदरों- जैसी या कुत्तो जैसी हरकते कर सकता है वक्ती तौर पर मगर मूल रूप से वो है मनुष्य ही -इसी तरह कभी कभी जानवर भी मनुष्यो से ज्यादा समझदारी दिखा देते हैं पर मूल रूप से उनकी जन्म पहचान लुप्त नहीं हो जाती रहता वो पशु ही है। इस मूल तत्व को पहचानिए।
गंड-मूल नक्षत्रो की जब बात होती है तो कुछ लोग इसक मजाक भी उड़ाते है मगर इनका असर पड़ता है ,जरुरत है ठीक से विषय को समझने की---जैसे रेवती में चन्द्र होते ही खतरनाक नहीं हो जायेगा---उसे एक निश्चित डिग्री और चरण में होना जरुरी है। गंड मूल नक्षत्रो पर जरा सी जानकारी देने का प्रयास---
यदि हम राशियों के वितरण पर ध्यान दें तो स्पष्ट होगा कि प्रत्येक तृतीयांश अग्नि तत्व राशि से प्रारंभ तथा जल तत्व प्रधान राशि पर समाप्त होता है। ० अंश ,१२० अंश तथा २४० अंश को इसी आधार पर जन्म-कुंडली में भी त्रिकोणों की संज्ञा दी जाती है। ये बिंदु क्रमशः लग्न, पंचम तथा नवम भावो के प्रारम्भ माने जाते हैं।
ये तीनो बिंदु ऐसे हैं जहाँ नक्षत्र व् राशि दोनों एक साथ समाप्त व् आरंभ होते हैं। अर्थात ये बिंदु नक्षत्र व् राशि के संयुक्त सन्धि-स्थल हैं।
i---० अंश पर रेवती (मीन) समाप्त होकर अश्विनी (मेष) प्रारम्भ होता है।
ii---१२० अंश पर अश्लेशा (कर्क) समाप्त होकर मघा (सिंह) प्रारम्भ होता है।
iii---२४० अंश पर ज्येष्ठा (वृश्चिक) समाप्त होकर मूल (धनु) प्रारम्भ होता है।
उपरोक्त समाप्त होने वाले नक्षत्रों रेवती,अश्लेशा व् ज्येष्ठा का स्वामी बुध है तथा तीनो सम्बंधित राशिया मीन,कर्क, वृश्चिक जल तत्व प्रधान हैं। इसी प्रकार प्रारम्भ होने वाले नक्षत्रो अश्विनी,मघा ,मूल का स्वामी केतु है तथा तीनो सम्बंधित राशियाँ मेष,सिंह,धनु अग्नि तत्व प्रधान हैं। बुध के नक्षत्र रजोगुणी तथा केतु के नक्षत्र तमोगुणी हैं।
इस प्रकार ये बिंदु राशियों के अनुसार अग्नि तथा जल के संगम स्थल तथा नक्षत्रो के अनुसार रज और तम के। इन्ही के आधार पर ये संधि-स्थल क्षोभ पूर्ण,अशांत,बिस्फोटक एवं तूफानी होने के कारण अशुभ माने जाते हैं।
मूल,ज्येष्ठा व् अश्लेशा बड़े मूल कहलाते हैं तथा अश्विनी, रेवती व् मघा छोटे मूल।बड़े मूल में जन्मे जातक की मूल शांति २७ दिन में करवाई जाती है और छोटे मूल में जन्मे की १० या १९ वे दिन जन्म के।
सन्धि के अधिकाधिक निकट गंड मुलो की अशुभता में और भी वृद्धि हो जाती है। ० ,१२०, २४० अंश तो अत्यंत ही संवेदनशील बिंदु हैं, क्योंकि यहीं पर जल और अग्नि का वास्तविक मिलन होता है। या तो ऐसा बालक जीता नहीं है या जी जाये तो फिर विशेष रूप से विख्यात होता है ,परन्तु माता-पिता के लिए कष्टकारक होता है।
द्वितीय भाव आने का सफलता का भाव और एकादश भाव धन का भाव -- यानि द्वितीय भाव का जो फल है उसे एकादश से दिखला  रहे हैं और एकादश के फल को द्वितीय से जोड़ दिया है -- कहाँ ले जा रहे हैं ये लोग?? ऐसी पोस्ट डालने वाले ने किसी बहुत बड़े गुरु महाराज की फोटो प्रोफाइल में लगाईं हुई है - अब वो दिन भी दूर नहीं जब कोई आकर कहेगा हाँ ये सही है ''according to नाड़ी ज्योतिष''-- ऐसे ही बिखराव होता रहता है।
एक डड्डू इसी तरह छठे भाव को  धन भाव बतला रहा था - अब आप बताओ ऐसे गुरुओ से सीख कर चेले सोशल मिडिया पर क्या बोलेंगे -वही बोलेंगे न जो गुरु सिखा दिया ऊपर से गुरु निन्दा पाप भी समझा दिया
ऐसा नहीं है कि ऐसा पानी सिर्फ ज्योतिष के पेशे में ही है - सबमे हैं - हर क्षेत्र में हैं - चूँकि मेरा विषय यही है इसलिए मैं इसी पर बोलूँगा।
अब वही चेला हर मँच पर गुरु की गलत बातों को डिफेंड भी करेगा और सबस लड़ेगा भी -- अब कोई कह सकता है मैने इन्ही गुरजी से फलादेश लिया था सही था-- भाई बंद घड़ी भी २ बार सही टाइम बतलाती है - उस तर्ज़ पर कुछ न कुछ तो सही हो ही जाएगा।
भावात भाव की भी गलत व्याख्या देखिये छठे के छठे भाव को भी अशुभ बतलाया जा रहा है -- जबकि एकादश रोगमुक्ति का भाव है - मुश्किल ये हैं कि भावात भाव किस संदर्भ में देखना है यही कोई नहीं बतलाता -- लग्नेश का तो नाम भी नहीं लेते और भावात भाव का गाना गाते रहते हैं -- जैसे आजकल जरा कम हो गया है मगर पिछले ३ साल पहले दशमेश का अष्टम में बैठना को शुभ बतलाने वालो की एक फ़ौज खड़ी हो गई थी-- क्यों??? तो वो इसलिए कि अष्टम भाव दशम भाव से एकादश है इसलिए -- हकीकत में ये बात इनकी समझदानी में नहीं घुसती थी कि ये स्थिति दशम भाव के लिए अच्छी है लग्नेश के लिए नहीं --यानि जातक के लिए नहीं -इसका सीधा फलादेश ये हैं कि जातक राज्य सरकार से अगर मुकदम्मे बाज़ी करेगा तो मुक्द्म्मा हार जायेगा - क्योंकि दशम भाव अपने से लाभ में - मगर जातक के लिए अष्टम में है- ये भी एक तरीका है भावात भाव को समझने का -- अब चूँकि मैं लच्छेदार और घुमावदार बातें -सजा कर एक इवेंट पोस्ट नहीं लिखता इसलिए लोगो को लगता है ये सही नहीं बोल रहा है शायद -- जिसने घुमाफिरा कर समझ में न आने वाली बातें लिखी है उसने गूढ़ ज्ञान बतलाया है -- ये उसी आर्ट एक्सिबिशन वाली कहानी की तरह है कि आयोजकों को जो तस्वीर समझ में नहीं आयी उसी को फर्स्ट प्राइज दे दिया -जबकि वो कोई तस्वीर ही नहीं थी कलाकारों ने अपना ब्रश पोछा था उसपर।
दोष निवारण के उपाय---
ज्योतिष-विद्या वह विज्ञानं है जो प्राक्रतिक नियमो की व्याख्या करती है।यह पूर्ण-रूपेण कर्म और पुनर्जन्म के सिद्धांत पर आधारित है।यहाँ पर न्यूटन के तीसरे नियम का समर्थन करती है कि प्रत्येक क्रिया की विपरीत प्रतिक्रिया होती है।यह सिद्ध होता है की कोई भी कर्म व्यर्थ नहीं जाता और बिना कारन कुछ नहीं होता। इस कारन से ज्योतिष विद्या को निर्णयात्मक विज्ञानं कहा जाता है।योग्य ज्योतिष द्वारा दिए गए यथार्थ फलादेश निश्चित ही फलित होते हैं,चाहे कोई उपाय करे या न करे।सभी मामलो में उपाय अशुभ से बचने के लिए पूर्ण सुरक्षा प्रदान नहीं करते।यह सभी को प्रत्याभूत भी नहीं होते। वे जो उपायों में विश्वास रखते हैं वो पूछते हैं कि यदि कोई अशुभता उपायों द्वारा कम नहीं की जा सकती तो क्यों ऋषियों ने अशुभता मिटने हेतु उपायों को निर्दिष्ट किया।यदि प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया होती है तो उपाय कैसे विफल हो सकते हैं? ज्योतिष-विद्या कहती है भाग्य को बदला नहीं जा सकता। प्रारब्ध से क्या तात्पर्य है इसे जो ज्योतिष नहीं हैं,वे सामान्यतः उचित रीती से समझ नहीं पाते हैं।प्रारब्ध वह होता है जो पिछले जन्म में किये कर्मो की वजह से जातक को इस जन्म में मिलता है।किसी व्यक्ति का प्रारब्ध इस जन्म में उपाय करने को प्रेरित करता है।
अब यहाँ यह देखिये 
A--- जातक ने 50000 रुपये किसी के धोखाधड़ी से मार दिए हैं, 

और
B--- जातक ने 100 रुपये का धोखा दिया है।
अब दोनों ने 100 रुपये का दान किया तो A जातक को तो कष्ट रहेगा ही क्योंकि उसके द्वारा किया गया दान नगण्य है, B द्वारा किया गया दान उसके कष्ट कम कर देगा ,क्योंकि वो क़र्ज़ से मुक्त हो चूका है । कुछ अपराध या कर्म जो जातक ने किये है वो अछम्य होते है जैसे किसी की हत्या करना,फिर वे चाहे इश्वर की कितनी भी आराधना करे उन्हें उसका दंड भोगना ही होता है। जब किसी इंसान की ऐसे ग्रह की दशा चल रही हो जिस पर पाप ग्रहों की दृष्टी हो तो इसका मतलब है उसने पिचले जन्मो में पाप कर्म किये हैं। इसी तरह दो जातक ज्योतिष के पास आते हैं एक की दशा अभी अच्छी नहीं है और एक की बुरी दशा समाप्त होने वाली है तो जिसकी अच्छी दशा आने वाली है उसे तो उपाय का लाभ जल्दी मिल जायेगा। पर जिसकी अच्छी दशा आने में देर है उसे उपाय से फल देर से ही मिलेगा

Saturday, 23 June 2018

ईश्वर क्या है -ईश्वर वो आत्मा है जो आपके अंदर है ---जी हाँ ये आत्मा ईश्वर का ही अंश है कहाँ ढूंढ रहे हो सब ईश्वर ---ईश्वर आपकी माता है जो आपके पैर धरती पर नहीं पड़ने देती थी ईश्वर आपके पिताश्री हैं जो आपके लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर देते थे, ईश्वर आपकी पत्नी के अंदर है जो आपके लिए यमराज से भी लड़ जाती है ईश्वर आपके उस बच्चे में हैं जो निष्पाप मुस्कराहट से आपकी तरफ देखता है और जिसे आज तक कोई नहीं समझ पाया कि बच्चे क्या सोचते हैं मन ही मन बचपन में। ईश्वर आपके मित्र में विराजमान हो जाता है जब आपका मित्र आपके सबसे बुरे वक्त में आपके साथ खड़ा हो जाता है और आपको दुश्वारियों से निकाल लेता है हमे पता भी नहीं चलता ईश्वर कब किस व्यक्ति के अंदर एक्टिवेट हो जाता है हम समझने में नाकाम हो जाते हैं।

Thursday, 21 June 2018

आजके आधुनिक बाबाओ के लगातार अन्दर जाने के परिप्रेक्ष्य में मेरी २ साल पुराणी पोस्ट। 
क्या माता पिता के रहते गुरु धारण करना चाहिए---
यदि मनुष्य माता-पिता की सच्चे मन से (बोझ समझ कर नहीं या केवल कर्तव्य निभाने के लिए नहीं) सेवा करता है, उनकी आज्ञा का पालन करता है ,उनके बताये मार्ग पर चलता है तथा उनके परामर्श का सम्मान करता है तो उसे उनके जीवित रहते किसी गुरु को धारण करने की कोई जरुरत नहीं है। क्योंकि माता-पिता से बड़ा कोई गुरु नहीं हो सकता। यदि माता-पिता में से एक भी जीवित है तो गुरु धारण करने का कोई कारण नहीं है। हाँ जब दोनों जीवित न हो तो गुरु धारण किया जा सकता है। यहाँ शिक्षा प्राप्त करने के लिए जो गुरु है उनकी बात नहीं की जा रही। धार्मिक गुरु की बात कर रहा हूँ जिसका चलन आजकल बहुत जोरो पर हैं और अच्छा खासा धंधा बन चुका है।

इसी तरह पति के जीवित रहते पत्नी को गुरु धारण नहीं करना चाहिए, क्योंकि पति से बढ़कर अन्य कोई भी उसके लिए गुरु नहीं हो सकता। आजकल कुछ विवाहित महिलाओ में गुरु धारण करने की होड़ सी लग गई है, हमारे धर्म में पति को परमेश्वर कहा गया है। जो स्त्री पति का तिरस्कार करती है और परिवार के कर्तव्यों से विमुख होकर या अपने कर्तव्यों को तिलांजलि देकर किसी धर्मगुरु, आचार्य या महाराज की कथा प्रवचन या उपदेश सुनने जाती है तो वो पाप की भागी होती है। धर्म का अभिन्न अंग कर्तव्य पालन करना होता है।

Wednesday, 20 June 2018

टेलीविज़न पर समाचार चैनेलो पर चलते ज्योतिष प्रोग्रामो को देखकर कोफ़्त होती है - जैसे स्क्रीन पर प्रचार चल रहा होता है '' इस उपाय के बाद आपके जीवन में होंगी खुशियाँ ही खुशियाँ'' या ''अब नहीं होगी आपके जीवन में धन की कमी'' या '' ये उपाय करे तो नहीं होगा दाम्पत्य जीवन में कलह'' अब दरअसल क्या है ये??? मज़बूरी उस ज्योतिष की भी है जो चैनेल पर आ रहा है कुछ न कुछ बोलना है ,दूसरी मज़बूरी ये भी है कि साधारण मनुष्य बुद्धि को ताक पर रखकर दिवास्वप्न के पीछे दौड़ना चाहता है। वहाँ सत्य बोलने वाला उनको अज्ञानी लगता है। जो उन्हें दिवास्वप्न दिखा रहा है दौड़ लेते हैं उसके पीछे -ये सोच कर कि शायद ये ज्योतिष बाबा सचमुच ''तीसरी आँख की शक्ति का अधिकारी है'' मज़बूरी उस ज्योतिषी की भी है जो जानता है ,वलोक लुभावन सुर्रे नहीं छोड़ेगा तो कोई नहीं पूछेगा उसे। ठीक उस राजनैतिक पार्टी की तरह जो अगर सब सच बोल देगी तो कभी सत्ता में नहीं आ पाएगी। कई लोगो को शायद मालूम नहीं विधान-सभा का चुनाव हो या लोकसभा का कुछ ऐसे लोग भी पिछले ४०-५० साल से चुनाव लड़ रहे हैं जो सचमुच ईमानदार है और सच बोलते हैं -मगर हर बार उनकी जमानत जब्त हो जाती है।

Tuesday, 19 June 2018

दाम्पत्य जीवन में शांति के लिए सिर्फ कुंडली का ही रोना न रोये और न ही ज्योतिष या ज्योतिष शाश्त्र को दोषारोप करते फिरे। दाम्पत्य जीवन में सुख चाहते हैं तो कुछ आपकी तरफ से भी ऐसा होना चाहिए जिससे जीवन में सुख शांति रहे -इस अड़ी पर न अड़े रहे कि हम तो जी अपने व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं लाएंगे ,बस ज्योतिषी कोई उपाय बता दे। कोई ऐसा रत्न पहना दे जिससे सब कुछ ठीक हो जाए। ज्योतिषीय उपाय भी तभी काम करते हैं जब आप उन उपायो को सफल करने के लिए व्यवहारिक ज्ञान का भी उपयोग करते है। कुछ ऐसी बाते हैं जिन्हे अपना कर आप अपना जीवन सुखी कर सकते हैं।

१--- विवाह के बाद घर की सारी जिम्मेदारी पत्नी पर आ जाती है। घर सम्भालना रसोई सम्भालना बच्चे हो तो उनको सम्भालना। ठीक है पति कमा कर लाता है ,पर कभी कभी उनके इन कामो में हाथ बटाएं। दाम्पत्य जीवन में मधुरता आती है। यहाँ इस वक्त पति की माँ को उचित है कि वो हस्तक्षेप न करे। क्योंकि जोरू का गुलाम जैसा शब्द माँ-बाप के  पहले निकलता है और पति चाहते हुए भी पत्नी की मदद नहीं करता। तो अगर आप माता-पिता है और आपके घर में बहु है तो  आपका कर्तव्य है कि आप बेटे और बहु की व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप न करे। जबकि ज्यादातर परिवारो में पति-पत्नी के झमेले के पीछे मूल रूप से माता-पिता जिम्मेदार होते है।

२--- पत्नी को भी चाहिए कि पति अपनी माता-पिता का अगर ख्याल रखता है तो उसे कटाक्ष न करे ,जरा अपने ऊपर लेकर सोचे कि कैसे अपने माता-पिता के बारे में सोच कर उसकी जान निकली जाती है।

३--- पत्नी के मायके में कोई काम हो तो पति को उसमे ख़ुशी-ख़ुशी मदद करनी चाहिए इससे पति-पत्नी में प्रेम बढ़ता है। जबकि हकीकत में पति ऐसा करना अपनी हेठी समझते हैं। कुछ ये आशा तो करते है कि उनकी पत्नी सास ससुर का पूर्ण सम्मान करे पर पति अपने सास-ससुर का सम्मान करना भूल जाता है ,यहाँ पत्नी के मन में तकलीफ होती है जो दाम्पत्य जीवन में जहर घोलता है।

४--- पत्नी कोई भी गलती करती है तो उसे तो दोषी बोलते ही है साथ में तुम्हारे माता-पिता ने क्या सिखाया ऐसा ताना मारना नहीं भूलते जो कि गलत है।

५--- कुछ पति अपने मन में बज्र धारणा बना कर चलते हैं कि उनकी पत्नी बज्र मुर्ख है और वो बहुत बड़े बुद्धिजीवी इसलिए भी उनके बीच मानसिक दुरी इतनी बढ़ जाती है कि दाम्पत्य जीवन में तनाव का कारण बनता है। पति अपने इस अहम को यहाँ त्यागे। पहल तो भारतीय परपंरा के अनुसार अक्सर पत्नी की उम्र कम ही होती है ,इसलिए यहाँ सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करना चाहिए , खुद को पहले ही श्रेष्ठ मान कर उनसे व्यवहार न करे आपने कोई प्रतियोगिता नहीं जीतनी है।

६--- पत्नी को भी चाहिए कि अगर वो सम्पूर्ण घरेलु नारी है तो पति के बाहरी जीवन में बहुत ज्यादा ताक  झाँक न करे ,अक्सर शक करते रहने की वजह से भी जीवन में जहर घुल जाता है। क्योंकि आज प्रतियोगिता के युग में ऐसा बहुत कुछ करना पड़ता है जिसे नैतिकता कभी इजाजत नहीं देती पर जीना है तो पैसा कमाना  भी बहुत जरुरी है। आजकल कई बड़ी कम्पनियाँ अपने डीलरो इत्यादो को टूर पैकेज देती है। बड़ी कंपनी की तरफ से पार्टी दी जाती है जहाँ शराब और शवाब का नंगा नाच होता है। अब ये कुछ हद्द तक मज़बूरी भी बन जाता है। आपने जिन लोगो के साथ काम करना है तो पूरा न सही कुछ हद्द तक उनके रंग में रंगना पड़ता है। वरना यही पति सही तरीके से कमा कर नहीं लाएगा तो कुत्तो जैसा व्यवहार आप ही करेंगी उनसे। ऐसे मामलों जरुरत से ज्यादा सपर्श-कातर होना आपके दाम्पत्य जीवन का सत्यानाश कर सकता है।

७--- अक्सर पति अपनी बीवी की सबके सामने खिल्ली उड़ा देते हैं और अपनी पत्नी को शर्मिंदा करते हैं। ऐसा करना बहुत खतरनाक है। आपकी पत्नी की कोई गलती है भी तो उसे अकेले में समझाएं। दुसरो के सामने उसकी तारीफ करें ताकि आपकी पत्नी को लगे कि कोई है जो उसके समर्थन में है इससे आपसी प्रेम और विश्वास बढ़ता है।

८--- अपनी पत्नी के जन्म-दिन की तारीख और खास करके विवाह की तारीख न भूले। उनके लिए ये दोनों बहुत मायने रखती है। विवाह की तारीख ख़ास इसलिए क्योंकि आपकी पत्नी अपना सबकुछ त्याग कर उस दिन आपके पास आई हुई होती है। बहुत प्यार करने वाले लोगो को त्याग कर आई हुई होती है। उसे लगना चाहिए न जिसके लिए सब त्यागा वो भी उसे प्यार करता है।

९--- कोई भी समारोह हो जन्म-दिन विवाह इत्यादि अपनी पत्नी को साथ लेकर जाएँ और उन पार्टियो में फ्लर्ट न करे। घर में कोई भी समारोह हो अपनी पत्नी को भी मुख्य दायित्व में रखे नहीं तो बहुदा ऐसा होता है। रहती तो आपके साथ आपकी पत्नी है और ऐसे समारोहों में मुखिया कोई और बन कर हुक्म चलाने लगता है। ऐसा न करे। भले ही अपने सम्मान के खातिर अपने फूफा-जीजा -भाभी-चाची आदि को महत्व देना है पर अपनी पत्नी को महत्वहीन बना कर उन्हें महत्व ने दे। बराबर का महत्व दे।

१०--- पत्नी के लिए कोई न कोई उपहार लाते रहे। पत्नी भी अपने पति को कोई न कोई उपहार देती रहे -घर की मुर्गी दाल-बराबर न समझ ले। अपने दाम्पत्य जीवन में किसी तीसरे को दखल ने देने दे। चाहे वो आपके माता-पिता ही क्यों न हो।   फ़ालतू की बातें दिमाग में न लाये कि इससे माता-पिता का अपमान हो जाएगा और आपको नरक का भागी बनना पड़ेगा ,बड़े प्यार से उन्हें कह दे कि इस मामले को मैं खुद संभाल लूंगा। पत्नी को भी चाहिए कि अपने माता-पिता का दखल ने डाले।  आप ऊपर के स्वर्ग के चक्कर में यहाँ जीवन को नरक बना लेंगे।

११--- इस सब के बावजूद जिंदगी नहीं सुधर रही है तो शांति से अलग हो जाए।

यहाँ ऊपर जो भी लिखा है मेरा व्यक्तिगत आकलन व् अनुभव है।
उपायो का सच या उपायो का मिथ---

प्रश्न---क्या उपाय काम करते है?

उत्तर---इसका उत्तर इतना सीधा नहीं है। इसका उत्तर हाँ भी है और ना भी। हाँ कैसे? जब कोई बीमारी काबू वाली होती है यानी कोई रोग अगर एडवांस स्टेज क्रॉस न कर गया हो तो जो दवा काम कर जाती है -वही दवा रोग एडवांस स्टेज क्रॉस कर गया हो या रोग अंतिम पड़ाव पर हो तो वही दवा अपना कोई असर रोगी पर नहीं दिखाती।

प्रश्न---फिर ज्योतिष उपाय क्यों बताते है?

उत्तर---भई ,जिस तरह डॉक्टर रोग देकर दवा का निर्वाचन करता है कि दवा देनी है या नहीं ,या रोगी के घरवालो को दुआ मांगने परामर्श देना है, क्योंकि कई मामलो में डॉक्टर रोगी के परिवार को बोलते हैं न कि '' अब कुछ नहीं हो सकता रोगी को घर जाइए या मैने जो करना था कर दिया अब दुआ ही किसी काम आ सकती है। ठीक इसी तरह जब एक ज्योतिष देखता है कि उपाय देना है या नहीं उपाय करना है या नहीं।

प्रश्न---आजकल टेलीविज़न पर या फेसबुक के कई पेजो पर कई लोग उपाय डालते रहते है क्या हमें वो करने चाहिए?

उत्तर--- नहीं इस तरह उपाय नहीं करने चाहिए '' सरल उपाय जैसे घर से दही खाकर निकलना ,कुछ मीठा या गुड खाकर निकलना तक साधारण उपाय ठीक है। ''ठीक उसी तरह जैसे सर दर्द होता है तो दवा दूकान से हम ''सेरिडोन'' खरीद कर खा लेते है मगर सर में दर्द अगर ट्यूमर की वजह से होगा तो डॉक्टर के पास जाना ही होगा। ठीक वैसे ही उटपटांग उपाय इस तरह से नहीं चाहिए। वैसे भी टेलीविज़न पर उपाय बताने का चलन अब कम होता जा रहा है। पहले तो लोग प्रोग्राम शुरू होते ही डायरी लेकर बैठ जाते थे और जो सुनते थे लिखते रहते थे। अब हर चीज़ की एक सीमा होती है कितने उपाय बताएँगे आखिर ? फिर उपाय हास्यकर स्तर पर उतर गए थे। गरदन दाए घुमाए ,हाथ पीछे रखे टांग ऊपर उठाये ,पानी पहले सर पर डाले छत से दौड़ कर उतरे ,दायें कान से सुने बायाँ कान बंद करे। हालाँकि आखिरी शब्द मजाक के तौर पर मैने कहे। मगर उटपटांग उपाय बताना शुरू हो चूका था ,जैसे निर्मल बाबा ने कर दिया ''जलेबी खाओ-लिपस्टिक खरीदो -पानी-पूड़ी खाओ---बर्फी खाओ।

Sunday, 17 June 2018

Learn Astrology in simple way--- Sidhant speaks--- SSP
शनि से प्रभावित जातक या शनि महादशा हो या राशि शनि की हो या लग्न में शनि हो या जिस ग्रह की दशा चल रही हो उस भाव में शनि हो या जिस ग्रह की दशा चल रही हो शनि उस ग्रह के साथ हो या जिस ग्रह की दशा चल रही हो शनि की उस पर दृष्टि हो तो जातक -चाय या कॉफी ज्यादा गर्म नहीं पी सकता - कोशिश भी करे तो मुँह जल जाता है ----


वैसे तो समझाना बेकार है इंसान की खुद की समझदानी में जो घुस जाता है वो उसे ही श्रेष्ठ समझ लेता है -फिर भी बोलना पड़ता है क्या करें -खत्म आप अकेले नहीं होंगे न आपके साथ हम भी हो जाएँगे - आप जब ''सनातन'' की जय बोलते हो तो उसे ''सनातन हिन्दू धर्म की जय'' बोलिए - क्योंकि सनातन का शाब्दिक अर्थ हैं जो ''सतत'' चला आ रहा हो - ऐसे तो फिर सभी धर्म सनातन ही है क्योंकि सभी सतत चले आ रहे हैं - आपको फँसा रहे हैं हिन्दू विरोधी और आप फँस जाते हैं -आप जरा गौर तो कीजिये -जो भी सनातन सनातन कर रहे हैं वो सब बीजेपी, आरएसएस और मोदी विरोधी हैं - और ये लोग सनातन को श्रेष्ठ और हिन्दू शब्द को ही मानने से इंकार कर रहे है। --आपलोगो ने शायद गौर नहीं किया कि आज तक किसी शंकराचार्य को ''आतंकवादियों'' द्वारा धमकी नहीं मिली --क्यों? क्योंकि वो हिंदुत्व समर्थक है ही नहीं आतंकवादी जानते है कि ये सनातनी बाबा और गुरु लोग हिंदुत्व की आंधी को रोकने में पूरी मदद कर रहे हैं -और जब युद्ध की बात हो न ज्ञान पेराई घर पर रख कर आनी चाहिए - हिन्दू लड़ने का ढोंग करेगा -हुँकार भी भरेगा फिर लगेगा अध्यात्म की माला जपने लोगो की नजरो में खुद को अच्छा दिखाने के लिए - जब सामने वाला गालियाँ दे रहा हो सामने वाला हथियार उठा रहा हो तो आप ''ओम नमः शिवाय'' बोलकर उससे नहीं जीत पाएँगे - आपको भी क्रोधित होने के लिए उसी का तरीका इस्तेमाल करना होगा --- आप लोगो ने ''मार्शल आर्ट'' सीखने वालो को देखा होगा जब लड़ते है तो जोर ये ''किया'' शब्द का उच्चारण करते हैं -ब्रुसली जब लड़ता था तो बहुत जोर से बिल्ली जैसा शब्द निकलता था - ''मार्टिना हिंगिस'' टेनिस खेलते वक्त इतना जोर से चीखती थी कि सामने वाला उसकी चीख से अपना ''ध्यान'' खो देता था इसकी शिकायत भी हुई थी। -न मुर्ख बनो न दूसरों को बनाओ १ हद्द तक हकीकत को समझ कर चलो - अध्यात्म उस वक्त पेर लेना जब कहीं एकान्त में या शांति से पूजा में बैठना।

Saturday, 16 June 2018

Vedic & KP Astrologer Sidhant Sehgal: Nature of planets reflected in human

Vedic & KP Astrologer Sidhant Sehgal: Nature of planets reflected in human: सूर्य से प्रभावित व्यक्ति जहाँ जाता है वहां के वातावरण को स्थिति को अपने काबू में करना चाहता है।  चन्द्र से प्रभावित व्यक्ति जहाँ जाएगा व...

Astrology

दुनियाँ में १००% सही कुछ भी नहीं हर चीज़ की अपनी सीमायें हैं। ---अब जैसे एक ''तकिया कलाम'' बहुत इस्तेमाल होता है कि कोई दैवज्ञ(ज्योतिषी) गलत हो सकता है मगर ज्योतिष शाश्त्र कभी गलत हो ही नहीं सकता ,कोई ये नहीं बोलता कि ज्योतिष शाश्त्र की भी अपनी सीमायें है। ये तो कुछ ऐसा ही हुआ कि बस चलाने वाला गलत हो सकता है बस कभी गलत नहीं हो सकती। युग बहुत बड़ी चीज़ होती है युग परिवर्तन के साथ ही कुछ मान्यताये खत्म हो जाती है या इस्तेमाल के लायक नहीं रह जाती ---आज कई साधनाए है जिसमे स्त्री-पुरुष का योगदान जरुरी है मगर आधुनिक युग में आप ऐसा नहीं कर सकते या जायज नहीं है---अगर जायज हैं तो ''आशाराम बापू'' को दोषी न माने आप एकदम। हो सकता है वो कोई साधना कर रहे हो। पाराशर मुनि ने जो माता सत्यवती के साथ किया आज ऐसा करने का दुस्साहस कोई नहीं कर सकता।

Saturn

शनि का नाम सुनते ही या शनि की साढ़ेसाती का नाम सुनते ही या शनि की महादशा शुरू होने वाली है सुनते ही अच्छे अच्छो की रूह कांप उठती है ,कई नासमझ तो यहाँ तक सोचने लगने है कि ये ग्रह न होता तो अच्छा होता जैसे कई कहते हैं राहु-केतु न होते तो अच्छा होता ---मगर ये संभव नहीं है आप जानते हैं शनि वो वायु है जिसमे हम सांस लेते है अब जरा सोचिये वायु के बिना कोई जीने की कल्पना कर सकता है क्या? शनि कल पुरुष का दुःख है ये ठीक है शनि दुःख का कारक है मगर जरा सोचिये दुःख ही अगर न हो तो सुख को कैसे पहचानेंगे। रात अगर न हो तो दिन की कीमत क्या होती? शनि श्रम है श्रम के बिना कुछ भी संभव नहीं दुनिया में ---शनि कृषि का कारक है शनि ही न हो तो हमे भोजन ही न मिले। अब राहु केतु ---राहु आपका सामने का हिस्सा है केतु आपका पिछला हिस्सा जिसे आप देख नहीं पाते। अब बताये कैसे संभव है की राहु केतु न हो।
जरुरत से ज्यादा आध्यात्मिकता आपको पागल बना सकती है। रोजमर्रा का जीवन ही नहीं पूरी दुनियाँ ठप्प पड़ सकती है ,आध्यात्मिकता के नाम पर जो परोसा जाता है। अब हमारे पश्चिम बंगाल में एक खानदान के दिमाग में घुस गया कि आत्मा की मृत्यु नहीं होती सिर्फ शरीर की मृत्यु होती है ,अब अपनी इस सोच के तहत उनका मरने के बाद शरीर के दाह-संस्कार से विश्वास उठ गया ,इसी सोच के तहत एक भाई ने अपनी बहन की लाश घर पर ही रख दी ,क्योंकि वो उसकी मृत्यु हुई नहीं मान रहा था। अब गिरफ्तार होकर आजीवन जेल में सड़ेगा। अब सम्भालो पागलो को। आध्यात्मिकता और वास्तविकता का घालमेल न करे। कर्म करें ज्यादा मोक्ष मोक्ष न सोचे। कुछ लोग अन्न जल त्याग करके बिस्तर पर पड़े है मोक्ष के इंतज़ार में ये साधना नहीं पागलपन है ,मूर्खता है। तब तो अपने बच्चे को भी जन्म के बाद से ही भोजन -पानी कुछ न देकर जल्दी मोक्ष करवा दीजिये उसका भी ,क्योंकि बड़ा होगा तो पाप कर्म कर सकता है ,उन पाप के कर्मो का फल अगले जन्म में भोगेगा ,इसलिए उसे मुक्त कर दीजिये आप न बड़ा होगा न पाप करेगा ,पिछले जन्मो के कर्मो से आप जैसे मुर्ख के घर जन्म हुआ है उसका ,अब आगे पाप न करके उसको अन्न जल बचपन में ही त्याग करवा कर उसका मोक्ष संपन्न कीजिये जन्म से २ दिन में ही बैकुंठ पहुँच जाएगा। आपने सुना होगा कुछ लोग सामूहिक आत्महत्या करते हैं ये सोच कर कि मृत्यु के बाद का जीवन इससे ज्यादा सुखकर है। पागलपन ही कहेंगे न इस सोच को।
ज्योतिष के बेसिक का बैठता हुआ भट्ठा काफी चिंता का विषय है व्यक्तिगत तौर आधुनिक वक्त में मैं किसी भी ज्योतिष के प्रति जरा सा भी श्रधाशील नही हूँ, बात कड़वी जरूर है मगर सत्य बोल रहा हूँ। तीन दशक इस विद्या का अध्ययन करने के बावजूद शेखचिल्लियॉ की तरह भविष्यवाणियां करने की कोशिश कभी नही करता , इतने वक्त के बावजूद ज्योतिष को 10 प्रतिशत भी समझ पाया या नही संशय में रहता हूँ वहाँ बाज़ारवाद और विज्ञापन के सहारे ब्रह्मा बने हुए लोगो की बातें सुनकर हँसी भी आती है कोफ्त भी होती है।
एक नया प्रचलन तो और भी खतरनाक शुरू हो गया है, ज्योतिष के बेसिक से हट कर कोई भी स्वयंभू कुछ भी व्याख्या कर रहा है उसे अगर टोको तो बड़ा फैंसी जवाब आता है , 
Its according to nadi astrology...
और जिन्हें नाड़ी के बारे कुछ नही मालूम या जानकारी नही है वो चुप हो जाते है।
साथ मे ये अध्यात्म का झूठा चोचला कहाँ लेकर जाएगा सोचने का विषय है।