Tuesday, 20 November 2018

भारतीय ज्योतिष विधा में वैदिक ज्योतिष सबसे प्राचीन और प्रमाणिक माना जाता है (Vedic Astrology is the father of all new Astrology System)। कृष्णमूर्ति पद्धति भी वैदिक ज्योतिष पर आधारित है कैसे और कहां तक यहां इन्हीं बातों का जिक्र main kar raha hoon.....
वैदिक ज्योतिष को आधार मानकर आज भी ज्योतिषशास्त्री इसके विभिन्न विषयों को लेकर प्रयोग करते रहते हैं। ज्योतिष की कृष्णमूर्ति पद्धति जिसका प्रादुर्भाव दक्षिण भारत में हुआ है, यह भी वैदिक ज्योतिष पर ही आधारित है। कृष्णमूर्ति पद्धति को लेकर वैदिक ज्योतिष में आस्था रखने वाले ज्योतिषशास्त्रियों में यह भ्रम बना हुआ है कि यह प्रमाणिक नहीं है क्योंकि यह वैदिक ज्योतिष पर आधारित नहीं है। वैसे ज्योतिषशास्त्री जो इस तरह की विचारधारा रखते हैं उन्हें यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि कृष्णमूर्ति भी वैदिक ज्योतिष के मानने वालों में से हैं। उन्हेंने फलादेश को वास्तविकता के निकट लाने हेतु इसमें प्रयोग किया है। यह प्रयोग क्या है और यह किस प्रकार वैदिक ज्योतिष से सम्बन्ध रखता है यहां इसी विषय पर मैं कुछ कहना चाहता हूँ।
वैदिक ज्योतिष में राशि को प्रमुखता दी गई है और फलादेश के लिए राशियों का विभाजन 30 डिग्री पर किया गया है। इसके अलावा वैदिक ज्योतिष पद्धति में भचक्र (राशिचक्र) को 27 भागों में विभक्त किया गया है और नक्षत्रों का निर्माण किया गया है। श्री कृष्णमूर्ती ने नक्षत्रों पर शोध किया, और पाया कि इनके ज़रिये सटीक फलादेश किया जा सकता है।
उन्होंने नक्षत्रों के विंशोत्तरी दशा से संबंध की खोज की, और अपनी पद्धति में उसका समावेश किया (Krishnamurthi relates Nakshatra to Vimsottari Dasha)। विंशोत्तरी दशा में व्यक्ति के जीवनकाल को 120 वर्षों का माना गया है। इसमें यह माना गया है कि इस दौरान व्यक्ति पर भिन्न ग्रहों का प्रभाव रहता है, जिसके अनुसार उसे फल प्राप्त होता है। मान लीजिए आपका जन्म सूर्य की विंशोत्तरी दशा में हुआ है जिसकी अवधि 6 वर्ष की होती है तो आपको सूर्य के बाद आने वाले ग्रहो की दशा से गुजरना होता है जैसे चन्द्र, मंगल से लेकर शुक्र तक।
कृष्णमूर्ति महोदय अपनी पद्धति में फलादेश की निकटता तक पहुंचने के लिए वैदिक ज्योतिष के सूक्ष्म से अतिसूक्ष्म की ओर जाने की बात करते हैं... यही कारण है कि इन्होंने राशि के बदले नक्षत्रों को प्रमुखता दिया है।
वैदिक ज्योतिष की पुरानी पद्धति में हम सूक्ष्म फल कथन के लिये नवांश का इस्तेमाल करते हैं, जो की राशि का नौंवा हिस्सा है। इन्होंने राशि के बदले नक्षत्रों को 9 भागों में विभाजित किया है अर्थात 13 डिग्री 20 मिनट को नौ भागों में बांटा गया है (Krshnamoorthy divides Nakshatra in nine part but this division is not equal)। लेकिन यह विभाजन भी समान नहीं है इसमें विंशोंत्तरी दशा में ग्रहों की अवधि के आधार पर विभाजन किया गया है जिससे कालांश का जन्म हुआ है। यानी वैदिक ज्योतिष से थोड़ा हटकर इन्हें नवमांश के बदले कालांश को अपनाया है।
कालांश के कारण इस विधि से अगर फलादेश किया जाता है तो सूक्ष्म घटनाओं का भी कथन हो सकता है। इस पद्धति में वैदिक ज्योतिष के अन्य तमाम विषयों एवं सिद्धांतों को वास्तविक रूप में स्वीकार किया गया है। वैदिक ज्योतिष में आस्था रखने वाले ज्योतिषशास्त्री अगर इस पद्धति से वैदिक ज्योतिष के फलादेश को निकालने की कोशिश करें तो उन्हें निश्चित ही सुपरिणाम प्राप्त होंगे।
निष्कर्ष के तौर पर यही कह सकते हैं कि वैदिक ज्योतिष देव स्वरूप है जिसके निकट पहुंचने के लिए आप राशि पद्धति नवमांश को अपनाएं या कृष्णमूर्ति के नक्षत्र पद्धति यानी कालांश को, मकशद जातक के जीवन के सम्बन्ध में फलादेश के निकट पहुंचना है।----

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