ज्योतिष शास्त्र के महर्षि पराशर का कथन है कि-----------''विंशोत्तर-शतं पुर्न्मायु: पुर्वमुदाहर्यतं। कलौं विमशोत्तरी तस्माद् दशा मुख्या द्विजोत्तम!.''
अर्थात कलयुग में विमशोत्तरी दशा का ही प्रयोग करना चाहिए।कुछ विद्वानों का मत है की कृष्णा-पछ में दिन के समय और शुक्लापछ में रात्रि में जन्म हो तो अष्टोत्तरी दशा का प्रयोग करना चाहिए पर अनुभव में टिका नहीं।भृगु संहिता या साउथ भारत में भी इसी दशा का ही प्रयोग किया जाता है यहाँ तक की आधुनिक ज्योतिष के पितामह कृष्णामूर्ति जी ने भी न्छात्रो को जो 249 sub में बदला है वो भी विमशोत्तरी दशा का ही प्रयोग करके किसी और दशा का प्रयोग नहीं किया है। अब कोई घटना घट जाने के बाद कोई fabricating करता है किसी और दशा को अपने को जस्टिफाई करने के लिए सिर्फ तो वो ज्योतिष शास्त्र का कोई भला नहीं कर रहा।
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