साधना या उपायों में सफलता के लिए दो चीजों की या बातों की बहुत जरुरत होती है और वो है ---धैर्य और विश्वाश।इन दोनों के अभाव में इस छेत्र में सफलता की उम्मीद नहीं की जा सकती।परन्तु अधिकतर मामलो में धैर्य और विश्वाश का अभाव होता है और जब इनके अभाव में साधना या उपाय सफल नहीं होते तो उन लोगो को यह निष्कर्ष निकालने में समय नहीं लगता कि साधन या उपायों से कुछ नहीं होता।अक्सर ऐसा होता है की किसी को हम किसी मंत्र का जाप करने की सलाह देते है तो वो मंत्र का जाप पूरा होते ही फ़ोन कर देता है की गुरूजी मंत्र तो मैने पद लिया पर काम नहीं बना अबतक उतावले पण की हद ही कहेंगे इसे डॉक्टर की दवा भी इतनी जल्दी असर नहीं दिखाती। पर उस जातक ने मंत्र जाप करके भगवन पर पूरा एहसान किया है और एहसान का फल न मिलने की शिकायत भी।किसी का ध्यान जब मंत्र जाप पर कम और फल पैर ज्यादा होगा तो उपाय कितना सफल होगा आप समझ सकते हैं। फल की आशा में जातक कोई साधन शुरू तो कर देता है पर धैर्य और विश्वाश के अभाव में वो दो चार दिन से ज्यादा कर नहीं पता क्योंकि फल उसे आता नज़र नहीं आता। और कोई बहाना बना कर वो साधना से विरत होने का बहाना ढूंड लेता है और फिर यह कहते हुए मिल जाता है जातक की यदि इन कामो से साधनों से कुछ होना होता तो साधू संत अभावो में क्यों रहते? वे सभी ऐश्वर्या प्राप्त करके आनंद से रहते। पर वो लोग या जातक यह नहीं समझते की भाई जो कामना या इच्छा आपकी है वो कामना उस साधू या संत की नहीं है।उस साधू संत की कामना आपसे भिन्न है। उसने साधना के छेत्र में उच्चस्तर प्राप्त करने के लिए अपने गुरु के सानिध्य में रह कर कठोर ताप किया है तभी जो सिध्हियाँ उस साधू के पास हैं वो आपके पास नहीं हैं।वो साधू या संत आपकी तरह धन के लालच में साधना नहीं कर रहा वो तो इश्वर प्राप्ति के लिए कठोर तप कर रहा है। धन समिरिद्धि या दूसरी भौतिक लालसा उसकी नहीं है। धन या भौतिक सुख की साधू संत की लालसा होती तो वो कठोर जीवन का प्रण क्यों लेता।
No comments:
Post a Comment