Friday, 30 November 2018
Thursday, 29 November 2018
Wednesday, 28 November 2018
Tuesday, 27 November 2018
Monday, 26 November 2018
Sunday, 25 November 2018
Saturday, 24 November 2018
Friday, 23 November 2018
Thursday, 22 November 2018
जीवन क्या है - हम जिसे जी रहे हैं उसे हम अमूमन जीवन समझते हैं, पर जीवन के भी अलग-अलग मायने हैं। बीमार को सही दवा मिल जाये तो लगता है उसे जीवन मिल गया। भूखे को भोजन मिल जाए तो लगता है जीवन मिल गया। भिखारी को सूखी रोटी भी मिल जाए तो उसे लगता है जीवन मिल गया। अकेले सुनसान रास्ते में कोई संगी या वाहन मिल जाये तो लगता है जीवन मिल गया। भाई एकदम सादे भोजन के साथ एक हरी मिर्ची मिल जाए तो भी लगता है जीवन मिल गया। तो इस तरह जीवन के भी कई रूप हैं -या कहे कभी-कभी इसे हम नवजीवन कहते हैं।
Wednesday, 21 November 2018
Tuesday, 20 November 2018
साधना या उपायों में सफलता के लिए दो चीजों की या बातों की बहुत जरुरत होती है और वो है ---धैर्य और विश्वाश।इन दोनों के अभाव में इस छेत्र में सफलता की उम्मीद नहीं की जा सकती।परन्तु अधिकतर मामलो में धैर्य और विश्वाश का अभाव होता है और जब इनके अभाव में साधना या उपाय सफल नहीं होते तो उन लोगो को यह निष्कर्ष निकालने में समय नहीं लगता कि साधन या उपायों से कुछ नहीं होता।अक्सर ऐसा होता है की किसी को हम किसी मंत्र का जाप करने की सलाह देते है तो वो मंत्र का जाप पूरा होते ही फ़ोन कर देता है की गुरूजी मंत्र तो मैने पद लिया पर काम नहीं बना अबतक उतावले पण की हद ही कहेंगे इसे डॉक्टर की दवा भी इतनी जल्दी असर नहीं दिखाती। पर उस जातक ने मंत्र जाप करके भगवन पर पूरा एहसान किया है और एहसान का फल न मिलने की शिकायत भी।किसी का ध्यान जब मंत्र जाप पर कम और फल पैर ज्यादा होगा तो उपाय कितना सफल होगा आप समझ सकते हैं। फल की आशा में जातक कोई साधन शुरू तो कर देता है पर धैर्य और विश्वाश के अभाव में वो दो चार दिन से ज्यादा कर नहीं पता क्योंकि फल उसे आता नज़र नहीं आता। और कोई बहाना बना कर वो साधना से विरत होने का बहाना ढूंड लेता है और फिर यह कहते हुए मिल जाता है जातक की यदि इन कामो से साधनों से कुछ होना होता तो साधू संत अभावो में क्यों रहते? वे सभी ऐश्वर्या प्राप्त करके आनंद से रहते। पर वो लोग या जातक यह नहीं समझते की भाई जो कामना या इच्छा आपकी है वो कामना उस साधू या संत की नहीं है।उस साधू संत की कामना आपसे भिन्न है। उसने साधना के छेत्र में उच्चस्तर प्राप्त करने के लिए अपने गुरु के सानिध्य में रह कर कठोर ताप किया है तभी जो सिध्हियाँ उस साधू के पास हैं वो आपके पास नहीं हैं।वो साधू या संत आपकी तरह धन के लालच में साधना नहीं कर रहा वो तो इश्वर प्राप्ति के लिए कठोर तप कर रहा है। धन समिरिद्धि या दूसरी भौतिक लालसा उसकी नहीं है। धन या भौतिक सुख की साधू संत की लालसा होती तो वो कठोर जीवन का प्रण क्यों लेता।
भारतीय ज्योतिष विधा में वैदिक ज्योतिष सबसे प्राचीन और प्रमाणिक माना जाता है (Vedic Astrology is the father of all new Astrology System)। कृष्णमूर्ति पद्धति भी वैदिक ज्योतिष पर आधारित है कैसे और कहां तक यहां इन्हीं बातों का जिक्र main kar raha hoon.....
वैदिक ज्योतिष को आधार मानकर आज भी ज्योतिषशास्त्री इसके विभिन्न विषयों को लेकर प्रयोग करते रहते हैं। ज्योतिष की कृष्णमूर्ति पद्धति जिसका प्रादुर्भाव दक्षिण भारत में हुआ है, यह भी वैदिक ज्योतिष पर ही आधारित है। कृष्णमूर्ति पद्धति को लेकर वैदिक ज्योतिष में आस्था रखने वाले ज्योतिषशास्त्रियों में यह भ्रम बना हुआ है कि यह प्रमाणिक नहीं है क्योंकि यह वैदिक ज्योतिष पर आधारित नहीं है। वैसे ज्योतिषशास्त्री जो इस तरह की विचारधारा रखते हैं उन्हें यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि कृष्णमूर्ति भी वैदिक ज्योतिष के मानने वालों में से हैं। उन्हेंने फलादेश को वास्तविकता के निकट लाने हेतु इसमें प्रयोग किया है। यह प्रयोग क्या है और यह किस प्रकार वैदिक ज्योतिष से सम्बन्ध रखता है यहां इसी विषय पर मैं कुछ कहना चाहता हूँ।
वैदिक ज्योतिष में राशि को प्रमुखता दी गई है और फलादेश के लिए राशियों का विभाजन 30 डिग्री पर किया गया है। इसके अलावा वैदिक ज्योतिष पद्धति में भचक्र (राशिचक्र) को 27 भागों में विभक्त किया गया है और नक्षत्रों का निर्माण किया गया है। श्री कृष्णमूर्ती ने नक्षत्रों पर शोध किया, और पाया कि इनके ज़रिये सटीक फलादेश किया जा सकता है।
उन्होंने नक्षत्रों के विंशोत्तरी दशा से संबंध की खोज की, और अपनी पद्धति में उसका समावेश किया (Krishnamurthi relates Nakshatra to Vimsottari Dasha)। विंशोत्तरी दशा में व्यक्ति के जीवनकाल को 120 वर्षों का माना गया है। इसमें यह माना गया है कि इस दौरान व्यक्ति पर भिन्न ग्रहों का प्रभाव रहता है, जिसके अनुसार उसे फल प्राप्त होता है। मान लीजिए आपका जन्म सूर्य की विंशोत्तरी दशा में हुआ है जिसकी अवधि 6 वर्ष की होती है तो आपको सूर्य के बाद आने वाले ग्रहो की दशा से गुजरना होता है जैसे चन्द्र, मंगल से लेकर शुक्र तक।
कृष्णमूर्ति महोदय अपनी पद्धति में फलादेश की निकटता तक पहुंचने के लिए वैदिक ज्योतिष के सूक्ष्म से अतिसूक्ष्म की ओर जाने की बात करते हैं... यही कारण है कि इन्होंने राशि के बदले नक्षत्रों को प्रमुखता दिया है।
वैदिक ज्योतिष की पुरानी पद्धति में हम सूक्ष्म फल कथन के लिये नवांश का इस्तेमाल करते हैं, जो की राशि का नौंवा हिस्सा है। इन्होंने राशि के बदले नक्षत्रों को 9 भागों में विभाजित किया है अर्थात 13 डिग्री 20 मिनट को नौ भागों में बांटा गया है (Krshnamoorthy divides Nakshatra in nine part but this division is not equal)। लेकिन यह विभाजन भी समान नहीं है इसमें विंशोंत्तरी दशा में ग्रहों की अवधि के आधार पर विभाजन किया गया है जिससे कालांश का जन्म हुआ है। यानी वैदिक ज्योतिष से थोड़ा हटकर इन्हें नवमांश के बदले कालांश को अपनाया है।
कालांश के कारण इस विधि से अगर फलादेश किया जाता है तो सूक्ष्म घटनाओं का भी कथन हो सकता है। इस पद्धति में वैदिक ज्योतिष के अन्य तमाम विषयों एवं सिद्धांतों को वास्तविक रूप में स्वीकार किया गया है। वैदिक ज्योतिष में आस्था रखने वाले ज्योतिषशास्त्री अगर इस पद्धति से वैदिक ज्योतिष के फलादेश को निकालने की कोशिश करें तो उन्हें निश्चित ही सुपरिणाम प्राप्त होंगे।
निष्कर्ष के तौर पर यही कह सकते हैं कि वैदिक ज्योतिष देव स्वरूप है जिसके निकट पहुंचने के लिए आप राशि पद्धति नवमांश को अपनाएं या कृष्णमूर्ति के नक्षत्र पद्धति यानी कालांश को, मकशद जातक के जीवन के सम्बन्ध में फलादेश के निकट पहुंचना है।----
ज्योतिष शास्त्र के महर्षि पराशर का कथन है कि-----------''विंशोत्तर-शतं पुर्न्मायु: पुर्वमुदाहर्यतं। कलौं विमशोत्तरी तस्माद् दशा मुख्या द्विजोत्तम!.''
अर्थात कलयुग में विमशोत्तरी दशा का ही प्रयोग करना चाहिए।कुछ विद्वानों का मत है की कृष्णा-पछ में दिन के समय और शुक्लापछ में रात्रि में जन्म हो तो अष्टोत्तरी दशा का प्रयोग करना चाहिए पर अनुभव में टिका नहीं।भृगु संहिता या साउथ भारत में भी इसी दशा का ही प्रयोग किया जाता है यहाँ तक की आधुनिक ज्योतिष के पितामह कृष्णामूर्ति जी ने भी न्छात्रो को जो 249 sub में बदला है वो भी विमशोत्तरी दशा का ही प्रयोग करके किसी और दशा का प्रयोग नहीं किया है। अब कोई घटना घट जाने के बाद कोई fabricating करता है किसी और दशा को अपने को जस्टिफाई करने के लिए सिर्फ तो वो ज्योतिष शास्त्र का कोई भला नहीं कर रहा।
Sunday, 18 November 2018
Saturday, 17 November 2018
Friday, 16 November 2018
Thursday, 15 November 2018
Tuesday, 13 November 2018
Monday, 12 November 2018
Sunday, 11 November 2018
Friday, 9 November 2018
Subscribe to:
Posts (Atom)