Tuesday, 19 June 2018

उपायो का सच या उपायो का मिथ---

प्रश्न---क्या उपाय काम करते है?

उत्तर---इसका उत्तर इतना सीधा नहीं है। इसका उत्तर हाँ भी है और ना भी। हाँ कैसे? जब कोई बीमारी काबू वाली होती है यानी कोई रोग अगर एडवांस स्टेज क्रॉस न कर गया हो तो जो दवा काम कर जाती है -वही दवा रोग एडवांस स्टेज क्रॉस कर गया हो या रोग अंतिम पड़ाव पर हो तो वही दवा अपना कोई असर रोगी पर नहीं दिखाती।

प्रश्न---फिर ज्योतिष उपाय क्यों बताते है?

उत्तर---भई ,जिस तरह डॉक्टर रोग देकर दवा का निर्वाचन करता है कि दवा देनी है या नहीं ,या रोगी के घरवालो को दुआ मांगने परामर्श देना है, क्योंकि कई मामलो में डॉक्टर रोगी के परिवार को बोलते हैं न कि '' अब कुछ नहीं हो सकता रोगी को घर जाइए या मैने जो करना था कर दिया अब दुआ ही किसी काम आ सकती है। ठीक इसी तरह जब एक ज्योतिष देखता है कि उपाय देना है या नहीं उपाय करना है या नहीं।

प्रश्न---आजकल टेलीविज़न पर या फेसबुक के कई पेजो पर कई लोग उपाय डालते रहते है क्या हमें वो करने चाहिए?

उत्तर--- नहीं इस तरह उपाय नहीं करने चाहिए '' सरल उपाय जैसे घर से दही खाकर निकलना ,कुछ मीठा या गुड खाकर निकलना तक साधारण उपाय ठीक है। ''ठीक उसी तरह जैसे सर दर्द होता है तो दवा दूकान से हम ''सेरिडोन'' खरीद कर खा लेते है मगर सर में दर्द अगर ट्यूमर की वजह से होगा तो डॉक्टर के पास जाना ही होगा। ठीक वैसे ही उटपटांग उपाय इस तरह से नहीं चाहिए। वैसे भी टेलीविज़न पर उपाय बताने का चलन अब कम होता जा रहा है। पहले तो लोग प्रोग्राम शुरू होते ही डायरी लेकर बैठ जाते थे और जो सुनते थे लिखते रहते थे। अब हर चीज़ की एक सीमा होती है कितने उपाय बताएँगे आखिर ? फिर उपाय हास्यकर स्तर पर उतर गए थे। गरदन दाए घुमाए ,हाथ पीछे रखे टांग ऊपर उठाये ,पानी पहले सर पर डाले छत से दौड़ कर उतरे ,दायें कान से सुने बायाँ कान बंद करे। हालाँकि आखिरी शब्द मजाक के तौर पर मैने कहे। मगर उटपटांग उपाय बताना शुरू हो चूका था ,जैसे निर्मल बाबा ने कर दिया ''जलेबी खाओ-लिपस्टिक खरीदो -पानी-पूड़ी खाओ---बर्फी खाओ।

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