Sunday, 20 May 2018

Spirituality

आजकल जिसे देखो अध्यात्म का झुनझुना बजा रहा है। कर्म चक्र बड़े बड़े महारथियों को समझ में नहीं आया अभी तक -कोई इतना आसान है इसे समझना? कहते हैं जीव हत्या न करो ,मगर एक किसान कीड़ो से बचाने के लिए क्या क्या छिड़काव करता है, क्या वो ये न करे? खाओगे क्या तब? घर में तिलचट्टे ,मच्छर मारने को क्या क्या यत्न नहीं करते न मारे? मर जाएँ मच्छर से कटवा कर मलेरिआ से? सर में जुएँ पड़ जाए तो न मारे उन्हें? मारते तो हैं जीव हत्या तो हो गई ये भी। जीव तो जीव ही है जब जीव हत्या की बात आती है तो सिर्फ बकरा-मुर्गा-गाय-मछली तक ही क्यों अटके फिर हर जीव को न मारने का प्रण ले। उत्तर इतना आसान नहीं , कोई ब्रह्मऋषि भी इसका उत्तर शायद ही दे पाये। क्या करोगे तो क्या फल मिलेगा ,इसका उत्तर बहुत कठीण है। अभी जिसे देखो आओ अध्यात्म अध्यात्म खेल रहा है जिसे देखो प्रवचन दे रहा है।

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