Thursday, 9 November 2023

 गण्डमूल नक्षत्र क्या हैं?

यदि हम राशियों के वितरण पर ध्यान दें तो स्पष्ट होगा कि प्रत्येक तृतीयांश अग्नि तत्व राशि से प्रारंभ तथा जल तत्व प्रधान राशि पर समाप्त होता है। ० अंश ,१२० अंश तथा २४० अंश को इसी आधार पर जन्म-कुंडली में भी त्रिकोणों की संज्ञा दी जाती है। ये बिंदु क्रमशः लग्न, पंचम तथा नवम भावो के प्रारम्भ माने जाते हैं।
ये तीनो बिंदु ऐसे हैं जहाँ नक्षत्र व् राशि दोनों एक साथ समाप्त व् आरंभ होते हैं। अर्थात ये बिंदु नक्षत्र व् राशि के संयुक्त सन्धि-स्थल हैं।
i---० अंश पर रेवती (मीन) समाप्त होकर अश्विनी (मेष) प्रारम्भ होता है।

ii---१२० अंश पर अश्लेशा (कर्क) समाप्त होकर मघा (सिंह) प्रारम्भ होता है।
iii---२४० अंश पर ज्येष्ठा (वृश्चिक) समाप्त होकर मूल (धनु) प्रारम्भ होता है।
उपरोक्त समाप्त होने वाले नक्षत्रों रेवती,अश्लेशा व् ज्येष्ठा का स्वामी बुध है तथा तीनो सम्बंधित राशिया मीन,कर्क, वृश्चिक जल तत्व प्रधान हैं। इसी प्रकार प्रारम्भ होने वाले नक्षत्रो अश्विनी,मघा ,मूल का स्वामी केतु है तथा तीनो सम्बंधित राशियाँ मेष,सिंह,धनु अग्नि तत्व प्रधान हैं। बुध के नक्षत्र रजोगुणी तथा केतु के नक्षत्र तमोगुणी हैं।
इस प्रकार ये बिंदु राशियों के अनुसार अग्नि तथा जल के संगम स्थल तथा नक्षत्रो के अनुसार रज और तम के। इन्ही के आधार पर ये संधि-स्थल क्षोभ पूर्ण,अशांत,बिस्फोटक एवं तूफानी होने के कारण अशुभ माने जाते हैं।
मूल,ज्येष्ठा व् अश्लेशा बड़े मूल कहलाते हैं तथा अश्विनी, रेवती व् मघा छोटे मूल।बड़े मूल में जन्मे जातक की मूल शांति २७ दिन में करवाई जाती है और छोटे मूल में जन्मे की १० या १९ वे दिन जन्म के।

Tuesday, 17 October 2023

Vedic & KP Astrologer Sidhant Sehgal: कुछ भी बिना पढ़े या अध्ययन किये बगैर नहीं आ सकता ...

IN SHORT---
कुछ शब्दों में सभी राशियों का चारित्रिक वैशिष्ट लिपिबद्ध करने की कोशिश कर रहा हूँ
मेष राशी---इस राशि के जातक हर चीज़ में अग्रगण्य होना चाहते है ,दुसरो का परामर्श ग्रहण नहीं करते जल्दी ,अगर करते भी हैं तो बहुत मजबूरी में। दुसरो के अधीन काम करना पसंद नहीं करते।
वृष राशि---स्थिर राशि होने की वजह से इस राशि के जातक बहुत provoke करने के बाद भी गुस्सा नहीं होते इनमे सहनशक्ति गजब की होती है ,किसी भी काम में सफलता के लिए बहुत धीरज से इन्तेजार करते है। किन्तु अगर इस राशि जातक अगर गुस्सा हो जाए तो गुस्से में अंधे हो जाते है।
मिथुन राशि---द्वैत राशि होने की वजह से ये अक्सर द्विधाग्रस्त रहते हैं ,किसी भी परिस्थिति के साथ सामंजस्य बैठा लेते है ,दुसरो को उपदेश देना ,वाद-विवाद करना ,किसी चीज़ की व्याख्या करना अच्छे से कर लेते हैं पर नेतृत्व गुण इनमे कम होता है। जल्दबाज़ होते है।
कर्क राशि---कल्पना शक्ति प्रबल होती है इनकी। स्वाभाव में जमना गए जमना दास व् गंगा गए तो गंगा दास। इमोशनल होते हैं और कभी कभी जरुरत से ज्यादा संवेदनशील।
सिंह राशि---सूर्य ग्रहो का राजा है ये जातक सृजन व् धवंश दोनों करते हैं ,दुसरो की स्वार्थ रक्षा बखूबी करते हैं जयादा बात नहीं करते पर आदेश देने में निर्णय लेने में देर नहीं लगाते। अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से उनकी प्रशंसा करके काम निकालना बखूबी जानते है इनका दिल बड़ा और सहन-शक्ति असीम होती है।
कन्या राशि---चंचल व् परिवर्तनशील प्रकृति। पर कैसी भी प्रतिकूल परिस्थिति को अपने वश में कर लेते है। समय की कीमत को बखूबी पहचानते हैं। वास्तववादी होते है।
तुला राशि---न्यायप्रिय होते है। सामंजस्य बैठा कर चलना जानते है। न्याय करने की कोशिश करते हैं फैसला किसी के हक़ में करना या पक्षपात इनसे नहीं होता।
वृश्चिक राशि---ये जातक बहुत ढृढ़-प्रतिज्ञ होते हैं। अपना लक्ष्य स्थिर करते है और उसे पूरा करने को कूद पड़ते है। लक्ष्य तक पहुंचे बिना ये चैन से नहीं बैठते। किसी भी समस्या के सामने कभी आत्मसमर्पण नहीं करते।
धनु राशि---साहसी,उद्यमशील ,लोभी व् उन्नति चाहने वाले होते है। हमेशा सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं। बाधा-विघ्न दौरान इनका आत्मविश्वास निकल कर आता है। कोई भी काम सोच समझकर करते है।
मकर राशि---जातक वास्तववादी होता है। किसी भी काम को काफी धीरज के साथ करता है। जब तक इनका काम पूरा न हो अपने काम के सफल होने के पीछे शसंकित रहते है।
कुम्भ राशि---जातक बुद्धिमान होते है ,इनकी झूठी प्रसंशा करके कोई अपना काम इनसे नहीं निकलवा सकता। दुसरो का मतलब की बात बहुत जल्दी ताड़ जाते है। किसी भी नयी धारणा को वो जल्दी आत्मसात नहीं करते थोड़ा पुरातनपंथी होते हैं।
मीन राशि---दार्शनिक मनोभाव ,अस्थिर मन ,स्वप्न दर्शी व् कल्पना जगत में विचरण करना पसंद करते हैं। विनीत,भद्र व् कभी-कभी अतिशय दयालु भी होते है इसलिए असफल भी हो जाते है।